शीर्षक:- प्रेम जब भीतरी हो।।
जब तुम्हारे भीतर अचानक हो,
कहीं कोई नज़र ना हो,
तब भीतर सिसक ही उठ जाती है,
प्रेम भीतरी ही होता है,
इतना शोर होता है बाहर,
कि भीतर विश्वास सा रहता है,
रहता है याद है तुम्हें,
बहुत तलाश के बाद,
बाहरी आस पास के सब,
भीतर नजर आते हैं,
इस सहसा हुए एहसास ने,
प्रेम जगा दिया है,
अब रोज भीतर जाता हूं।।
- ललित दाधीच।।