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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

घायल बलिया कि हुंकार

बलिया बलिदान दिवस विशेष पर अपने बागी जिला बलिया जो सन् 1942 में ही आजाद हुआ था और आज भी विकास नहीं कर पाया उस जिले के युवाओं से अपना दर्द अपना आवाज़ अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूं यदि सही लगे तो साथ दीजिएगा और गलत लगे तो माफ कर दीजिएगा।
विकसित भारत @ 2047 के सपने को साकार करने के लिए सबका साथ चाहिए चाहें वो एक छोटा गांव हो या बड़ा शहर।

घायल बलिया चीख रहा है चीख सुनाने आया हूं,
घायल बलिया के फटे हाल का रूप दिखाने आया हूं।

मैं बलिया का शिक्षित समाज शिक्षा कि हाल बताने आया हूं,

न बना इंजीनियरिंग कॉलेज, न मेडिकल कॉलेज दिखता हैं,
तब क्यों इस बलिया में टेक्नोलॉजी और MBBS डॉ० ढूंढता है।

मैं बागी बलिया में मेडिकल व्यवस्था का स्थिति जानने आया हूं,
सुनलों ए बलिया के वासी एक मरीज़ का दर्द बताने मै आया हूं।

जब किसी का तबियत खराब हो कैसे पहुंचे हॉस्पिटल को,
अस्पताल में व्यवस्था नहीं हैं रेफर करदे मऊ, बनारस को।

पता चलता कि जान चली जाती मरीजों कि बीच रास्ते में,
कहां से पहुंचे मरीज बेचारा इलाज कराने अपना BHU में।

यहां से आगे बढ़ जब निकला मैं बलिया शहर के सड़कों पे,
तब जाकर मैं पहुंच गया बलिया के टाऊन हाल कि गलियों में।

मैं बलिया के टाऊन हाल का पहचान बताने आया हूं,
इस भारी बरसात में कचड़ों का दुर्गंध सुंघाने आया हूं।

घायल बलिया चीख रहा है दर्द बताने आया हूं,

क्या यहीं सपना देखा था मंगल पाण्डेय बागी ने,
सबसे पहले हुए आजाद बागी बलिया कि माटी से।

कहते हैं यदि सच बोलो तो लोगों से गाली सुनने को मिलती हैं,
तो मैं भी बलिया कि सच्चाई दिखाकर गाली सुनने आया हूं।

इन सभी अंधकारो पर से पर्दा हटना बहुत जरूरी है,
हमारे बलिया के सोए युवाओं का उठना बहुत जरूरी है।

मैं बलिया का कुछ इन्फ्रास्ट्रक्चर व्यस्था को देखने आया हूं ....
इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर जो हुए विकास को जानने आया हूं।

एक ही बुढ़वा ओवर ब्रिज खड़ा हैं जो हरदम सुना रहता हैं,
उसके नीचे चित्तू पाण्डेय क्रॉसिंग पर लंबी भीड़ दिखाई देता हैं।

उत्तर से दक्षिण को दिखता एक ही बुढ़वा ओवर ब्रिज बना,
जिसपर अधिकतम वहीं चढ़ता जिसको हॉस्पिटल जाना हो।

बिजली व्यवस्था कि हाल न पूछो, चाहे पूछो कोई और भी बात,
18-20 घंटे से अधिक बिजली हमने कभी अपने जीवन में न देखी है।

19 वी शताब्दी में बना स्टेडियम आज भी वैसा बेजान दिखता हैं,
फिर क्यों तुम बलिया में अपने कोई बड़ा खिलाड़ी ढूंढता हैं।

नहीं दिखता है कही बड़ी बिल्डिंगे नहीं कोई फैक्ट्री दिखता हैं,
जहां भी गया मैं बलिया शहर घूमने सुना सुना लगता हैं।

जब नहीं होगें कोई कर कारखाने या कोई बड़ी फैक्ट्रियां,
फिर कैसे बलिया ज्यादा सस्ती सामान खरीद पाएगा।

और कोई व्यक्ति घर छोड़ जब दुसरे शहर कमाने जाएगा,
कितना खाकर अपनी कमाई का कितना हिस्सा बचाएगा।

फिर तुम ही खुद सोचो ए बागी बलिया के शिक्षित युवा,
अपना बलिया राष्ट्रीय आय में भारत का कितना साथ निभाएगा।

फिर कैसे मेरा बागी बलिया विकसित बलिया कहलाएगा,
फिर कैसे मेरे बलिया का प्रति व्यक्ति आय बढ़ पाएगा।

आगे बढ़ते हुए मैं अब बागी युवाओं कि बात सुनाता हूं,

सिर पर पगड़ी, पांव में जूते, जात धर्म का टैग लगाता फिरता हैं,
झूठी शान दिखाने में केवल UP60 और बागी नारा लगाता है।

कब तक तुम केवल गाओगे गाथा सन् 42 के बलिदानों का,
है दम थोड़ा भी तुम में तो एक नई पहचान बना दो 2024 में।

घायल बलिया चीख रहा है चीख सुनाने आया हूं,
बलिया के इस फटे हाल का खुली पिक्चर दिखाने आया हूं।

झूठी बातें नहीं लिखी हैं मैंने, नाही फर्जी सुनाता हूं,
कविता लिखनी सीख रहा हु, चीखें लिखते जाता हूं।

जो मुझको यहां दिखी सच्चाई, केवल उसकी गाथा गाता हूं,
चाहें कोई गाली दे मुझको पर सच्ची बातें सुनाकर जाता हूं।

सबसे पहले हुआ आज़ाद जिला आज भी है पिछड़ा रहा,
बलिया मेरा सिमट रहा हैं, दर्द हैं इसका मुझे सीने में।

जब बलिया कि बागी धरती पर बंद पड़ी सब विकासे हो,
कैसे कोई गीत सुनादे झूठी बंद पड़ी विकास कि धारा कि।

जिसको गर्व से हम कहते हैं बागी धरती, वीरों कि धरती,
वो आज देखो कैसा सुखा, मुरझाया सा बलिया दिखता हैं।

मैं बलिया कि दर्दों से बहते आंसू दिखाने आया हूं,
पिछड़ रहे बलिया कि पूरी तस्वीरें साथ में लाया हु।

अंतिम बात मैं यही कहूंगा बलिया के इन सभी युवाओं से,
झूठी गाथा अब बन्द करो तुम वास्तविकता को पहचानो तुम।

अपने बलिया में विकास के लिए कुछ बड़ा करने का ठानों तुम,
जागो ऐ बलिया के सोए युवा तुम मैं तुम्हे जगाने आया हूं।

अपने खूबसूरत कर कलमों से कुछ रच के इतिहास दिखलाओ तुम,
अपने पिछड़े बलिया को विकसित बलिया का टैग दिलाओ तुम।

घायल बलिया विकास का भूखा हैं इसकी भूख मिटाने आया हूं,
अपने बलिया को विकसित बलिया बनाने कि चाहत में आया हूं।

- अभिषेक मिश्रा (बलिया)




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

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वेदव्यास मिश्र said

अभिषेक मिश्रा जी, बलिया मेरा भी मामा जी ( श्री रामलाल पांडे जी का शहर है !! मैं दो बार आया हूँ बलिया..एक बचपन में और दूसरी बार ग्यारहवीं कक्षा में !! बहुत ही अच्छी जगह लगी मुझे..मैं अपने मामी और दीदी जी के साथ गंगा जी नहाने पैदल ही गया था !! बहुत ही अच्छी भावपूर्ण कविता लिखी है आपने 👌👌 शुभाशीष नमन 🙏🙏

अभिषेक मिश्रा replied

बहुत बहुत आभार बड़े भाई आपका जो हमें और भी अच्छा लिखने पर मजबूर कर रहे हैं, ऐसे ही सहयोग की कामना करता हूं आपसे। एक कोशिश है अपने जिला के विकास के लिए देखते हैं कहां तक सार्थक हो पाता हैं।🙏🙏🙏🙏🙏

अभिषेक मिश्रा replied

कृपया हमें एक प्रश्न का जवाब आवश्य देने कि कृपा करें कि मैं अपना प्रोफाइल फोटो कैसे लगा सकता हूं।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut sundar roop se aapne Baliya Ki Dastan Prastut ki hai Abhishek ji..Bahut hi sundar prastuti...Profile pic ki baat hai wo aap likhantu.com ki WhatsApp helpline 9667994337 par apni profile pic bhej sakte hain, wo manually change kar dete hain.

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