माँगने से कब किसी को मिला
फिर भी मन्नतों का सिलसिला
मलाल अब होता नही मुझको
जेहन में कमल जब से खिला
एक तारीख आई गई जब से
प्यार का टूटा मेरा सिलसिला
सोचती हूँ अधूरी मोहब्बत का
उसने क्यों दिया मुझको सिला
कोल्हू की तरह जिन्दगी हुई
पाँव को बैल का रूप मिला
गुजर रही तारीख पर तारीख
त्योहार में भी सुकून ना मिला
अब इंतजार पर भरोसा करूँ
या सोचूँ समझूँ उसकी गिला
न दिन मिला न वक्त 'उपदेश'
हुज्जतो का जबाव ना मिला
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद