हालांकि हाइस्कूल परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन केवल एक अंक से रह गई थी फिर भी मैं कोई मेघावी क्षात्र नहीं था. फिर भी वायुसेना प्रशिक्षण स्कूल में चार टर्म परीक्षाओं में मैंने सर्वाधिक अंक प्राप्त किये थे और मेरी तथा मेरे प्रशिक्षको की अपेक्षानुसार फाइनल टर्म में मुझे सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षु का पुरस्कार डायस पर हमारे कमांडिंग ऑफिसर के हाथों विशिष्ट आयोजन में एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया.
मैं तो जैसे आसमान में उड़ते हुए बधाईओं शोर के बीच गुलदस्ता तथा मैडल सम्हालते हुए डायस से उतरा और अतिथितियों के बीच बैठ गया. तभी अचानक एक वज्रपात हुआ और ऐनाउंस किया कि पुरस्कार मुझे नहीं बल्कि किसी और को मिला है इसलिए वापस लिया जा रहा है. मैं तो लगभग चेतनाशून्य होगया. कौन मेरे गले से मैडल और हाथ से गुलदस्ता कब कैसे क्यों ले गया मालूम नहीं. जब होश आया तो सारा पंडाल खाली पड़ा था और एक कुर्सी पर केवल मैं ही विराजमान था.