गुज़र गए माता _पिता मेरे जिन से समाज जल रहे थे
बेशर्म को नहीं दिखता _ पाक आंखों को दिखता है
हमने जो देखा वो पाया माता पिता में किसी में नहीं देखा अबतक
अधिक नज़रें पहचान लेता है वज़ीर आज़म और सदर दुनियां को
जिसे अवाम ने बनाया शक्ति उसकी नहीं जो बैठा है कुर्सी पर
बगैर अवामी मदद के जहान में कोई दरवेश ओ कलंदर बनता है
देखने में तो सभी इन्सान लगता है मगर इंसानियत किसी में होता है
पहचान की सिफत आंखों में नही अच्छी आचरण के आंखों में होता है
वसी अहमद क़ादरी
वसी अहमद अंसारी