शाम होते ही परिंदे अपने घर आते।
सूर्य ढलने के बाद ख्वाब भर आते।।
सहर होते ही निकल जाते घौंसले से।
ख्वाब पूरे करने को इधर-उधर जाते।।
दूर तक साथ देते देखे गये हमसफर।
भोजन की तलाश में नगर नगर जाते।।
जिन्दगी गुजरती 'उपदेश' इसी तरह।
धुक-धुकी थकती ख्वाब बिखर जाते।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद