ना कुछ कहा ना कुछ सुना
पर आंखों में शिकायतें संजोए बैठी है
लब खामोश है मगर दिल की धड़कन
हर राज सुनाए बैठी है
वो मुझसे मुंह फुलाए बैठी है
ना गुस्सा किया ना इल्जाम लगाया
बस खामोश निगाहों में दर्द छुपाए बैठी है
मैं पास गया तो आंखें झुका ली उसने
जैसे कोई बारिश बादलों में छुपाए बैठी है
वो मुझसे मुंह फुलाए बैठी है
कभी मेरी बातों में हंस पड़ती थी
आज उन्ही बातों से नजरे चुराए बैठी है
मेने पूछा क्या रूठी हो मुझसे
वो बोली नहीं मगर बहुत कुछ बताए बैठी है
वो मुझसे मुंह फुलाए बैठी है
सोचता हूं क्या इतना बदल गया मैं
या वो ही अब दिल का हाल छुपाए बैठी है
हर सवाल का जवाब बस खामोशी में है
और वही खामोशी मुझे सताए बैठी है
वो मुझसे मुंह फुलाए बैठी है
अब चाहूं भी तो मनाऊं कैसे
वो नखरे बनाए बैठी है
मैने कहा चलो मेरी गलती थी
और अब मुस्कुरा के मेरी बाहों मे समाए बैठी है
वही जो मुझसे मुंह फुलाए बैठी है


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







