कविता - पिंटू के पापा और मम्मी....
पिंटू की मम्मी - सुनो जी बाजार का
चक्कर लगाए हो
साग और सब्जी में
ले कर क्या आए हो ?
मैं भी तो रसोई में
कुछ जा कर बनाऊं
बना कर सभी को
जल्दी से खिलाऊं
पिंटू के पापा - किसी दूसरे शहर में
हड़ताल और दंगा है
इसी के चलते बाजार में
हर चीज महंगा है
मेरे जेब में पैसे भी
बहुत कम पड़े थे
थोड़े से टिंडे उठा कर
लाया वह भी कुछ सड़े थे
पिंटू की मम्मी - फिर तो पिंटू के पापा
हम ऐसा करते हैं
जैसे तैसे करके
पेट अपना भरते हैं
प्याज काट नमक के
साथ रोटी को खाते हैं
आज का दिन हम
इसी तरह चलाते हैं
पिंटू के पापा - ठीक है पिंटू की मम्मी कल
फिर ऐसा ही दिन आएगा
जो होगा सो होगा कल...
कल को ही देखा जाएगा
ये जीवन है जीवन में हर
चीज एडजेस्टमेंट करना है
कमरे का किराया देना और
बच्चों का फीस भी तो भरना है
कमरे का किराया देना और
बच्चों का फीस भी तो भरना है....