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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

अब गांव ढूंढ़ते हैं

शहर में बस गए आकर अब गांव ढूंढ़ते हैं
कहीं वो पुराने बरगद की हम छाँव ढूंढ़ते हैं

जाम ब्रेड बटर खाकर मन ऊब गया देखो
वो चूल्हे की रोटियां संग हम साग ढूंढ़ते हैं

डनलप के मोटे गद्दे खुद खा रहें कमर को
फिर से कोई पुरानी अब हम खाट ढूंढ़ते हैं

है पी लिया शहर के आरो का बासी पानी
परिंदो के शोरगुल के अब हम घाट ढूंढ़तेहैं

ना जमीं हमारे पाँव तले ना सर पे आसमां
चाँद सितारों से सजी अब हम हाट ढूंढ़ते हैं




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

रीना कुमारी प्रजापत said

वाह! दिल छू लेने वाली पंक्तियां... Bahut khushnaseeb hote hain wo log jo ganv mein rahate hain unhi mein se hum bhi hai....

Shiv Charan Dass replied

शुक्रिया रीना जी ! वैसे गांव भी अब शहर से ऊपर हो गए हैँ

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