अपना घर गांव रिश्ते नाते
ये सभी पुरानी याद हो गए
अब तो यहां हर कोई
हर गली बाजारवाद हो गए
वैसे बाजारवाद तो
अपने मतलब का संसार भी है
इसे किस रूप में हम देखें ?
ये ठीक भी है बेकार भी है
इसे किस रूप में हम देखें ?
ये ठीक भी है बेकार भी है.......
----नेत्र प्रसाद गौतम