चंद्रमौलि, नागभूषण, गंगाधर, नीलकंठ, शंभो!
तुम्हारे श्रृंगार का वर्णन, कौन करे, कौन गुनगाए?
तुम्हारा रूप ऐसा मनमोहक,
कि देवता भी मंत्रमुग्ध हो जाएं।
जटाओं में गंगा जल बहता,
मस्तक पर चंद्रमा चमकता।
नेत्रों में प्रलय का तांडव,
हृदय में करुणा का सागर।
त्रिनेत्रों से निकलती ज्योति,
जग को रोशन करती।
गले में नागराज वासुकि का फन फैला हुआ।
धनुष में फूलों की माला,
बाणों में प्रेम का संदेश।
खप्पर की भिक्षा पात्र में,
संसार की पीड़ा समाती।
भस्म से शरीर रंगा हुआ,
गले में रुद्राक्ष की माला।
हस्त में डमरू बजाते,
ब्रह्मांड को झूमने पर मजबूर करते।
नंदी पर सवार होकर,
कैलाश पर्वत की ओर जाते।