कैसे पत्थर दिल इंसान बचे रह गये।
फूल दिल इंसान मुरझाकर सह गये।।
भाषा की शालीनता का चमत्कार है।
शब्दों के जाल में उलझे बसे रह गये।।
मोहब्बत की इन्तेहा हद तोड़ना चाहे।
दरिया की चपेट में जो आए बह गये।।
जाने कैसे बची रह गई कविताएँ मेरी।
जो सामने ना कह पाए सब कह गये।।
समझने वाले समझ रहे होंगे 'उपदेश'।
ना समझने वाले यों खामोश रह गये।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद