बचपन की धरोहर
बचपन भी क्या मासूम होता है ,
सच और झूट के दायरे से बड़ा होता है
जो मन भाये वही सही होता है,
बचपन भी क्या मासूम होता है।
बादलों के नाम होते हैं ,
सपनें भी मज़ेदार होते हैं,
खिलौने बात करते हैं ,
दिन जादुई बहार होते हैं ।
द्वेष- गिला का अर्थ न जाने ,
लड़ाई भी क्षणिक होती है,
रूठने मनाने का अंतर जो मिटा दे,
बचपन का वही आधार होता है।
उनकी मासूम शकल सब के मन में प्यार भर दे,
नटखट हरकतें हर्षोल्लास भर दे,
विश्वास सब पर वो करें,
प्यारी मुस्कान से प्रफुल्लित कर दें।
बचपन भी क्या मासूम होता है ,
सच और झूट के दायरे से बड़ा होता है।
डॉ स्वाति जैन