पांव नंगे रेत में चलकर जलेंगे
हमको अपने ही यहां अक्सर छलेंगे।।
राख होगी झोंपड़ी जिस दिन बेचारी
उनके महलों में दिए घी के जलेंगे।।
राह हैं दुश्वार मगर बढ़ते ही जायेंगे
लाल गुदड़ी के हम गिरके खिलेंगे।।
हर घड़ी और ज्यादा निखरते जायेंगे
दर्द की भट्ठी में जितना भी तपेंगे।।
बेशक़ हमें जो बेवफा कहता रहा है
उम्र भर हम नाम उसका ही जपेंगे।।
जिंदगी की दास यह तजवीज है कैसी
जितना ही डरेंगे लोग उतना ही मरेंगे।।