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कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

बादल बरस जाते तो क्या होता? - अशोक कुमार पचौरी


आसमान में घने बदल छाए हुए थे, मानो जैसे दिन में रात होगयी हो। कृतिका, क्षितिज को बार बार फोन लगा रही थी, लेकिन फोन न उठाने पर बहुत बेचैन हो रही थी। अभी पिछली रात को ही तो क्षितिज ने बताया था कि वह दोस्त की बहिन की सगाई की रस्म में जायेगा, कृतिका की मंजूरी मिलने के बाद ही तो क्षितिज वहां गया था, फिर भी कृतिका का मन उदास था।

क्षितिज अपने दोस्त विशाल की बहिन की सगाई में गया हुआ था, जहाँ उसके कॉलेज के बाकी दोस्त भी आने वाले हैं।
हालाँकि कृतिका को क्षितिज पर पूरा ऐतबार है लेकिन फिर भी मन कचोटेँ खा रहा है। कहीं ऐसा न हो कि शालिनी जो क्षितिज की कॉलेज की दोस्त कम एक्स गर्लफ्रेंड है और विशाल और क्षितिज की कॉमन फ्रेंड भी वहां आजाये और क्षितिज जिसका अभी अभी उससे ब्रेकअप हुआ है, कहीं भावनाओं में बहकर उसको कोई मौका दे बैठे दोबारा से अपनी जिंदगी में आने का।

हालाँकि ऐसा होने की उम्मीद नहीं है, पर कृतिका खुद अपने पहले प्यार के बारे में सोचकर बेचैन होरही थी कि क्षितिज से मिलने से पहले वह भी तो किशन को एक और मौका देना चाहती थी जिससे किसी भी तरह से उनके रिश्ते को बचाया जा सके और उसके दिल की तकलीफ कुछ कम हो।

लेकिन उसने किशन को मौका नहीं दिया था क्योंकि किशन पहले भी कई मौके लेचुका था और गवां चूका था। क्षितिज ने शालिनी को सिर्फ एक मौका दिया था, कृतिका इसी सोच में डूबी हुयी थी कि उसकी तरह क्षितिज कोई भूल ना कर दे और उसको दुबारा से तकलीफ पहुंचे, अभी तो कृतिका ठीक से उबर भी नहीं पायी थी।

क्षितिज और कृतिका एक दूसरे को ३ सालों से बहुत अच्छे से जानते थे, उन्होंने ब्रेकअप के बाद एक दूसरे को संभाला और यहीं उनके बीच में जो दोस्ती थी वो कब प्यार में बदल गयी कुछ पता नहीं चला और दोनों एक रिश्ते में आने के लिए प्रतिबद्ध होगये।

जितना ज्यादा वह क्षितिज और शालिनी के बारे में सोचती उतना ज्यादा उसका मन बेचैनी और घबराहट से भर उठता मानो जैसे वह कहना चाहती हो कि :-

"घबराहट थी
कोई आहट थी
डर था तो तुझको खोने का
खुश था एक पल
एक पल था हँसा
डर था तो सदियों रोने का
मेरी चाहत थी
तेरे वादे थे
कोई कारण तो था मिलने का
कहीं खुशबू थी
कोई फूल खिला था
भय था तो मुरझा जाने का
मेरा मन ना था
तुझे जाना था
डर था तो लौट ना आने का
कुछ यादें थी
मैं आहत था
डर था तो फिर ना चहकने का
मैं खुश होता कैसे
तेरे अंदर कोई खालीपन था
तू फूल था
मैं पेड़ ना था
डर था तेरे फिर ना महकने का
खुश था एक पल
एक पल था हँसा
डर था तो सदियों रोने का"


घबराहट और अपने विचारों से डरी हुयी कृतिका अपने मन को शांत रखने के लिए इधर उधर कुछ करने लग जाती पर फिर से मन उचटता और उन्ही विचारों में कहीं खो जाती।

वक़्त गुजरता गया, घने बादल जो आसमान में छाए हुए थे वो बिना बरसे ही जाने लगे उनके जाने पर ऐसा लग रहा था जैसे दिन दुबारा से निकला है, अभी अभी सुबह हुयी है, बादलों के पूरी तरह जाते जाते क्षितिज भी बाहर आचुका था, कृतिका ने दरवाजा खोला और अपने हाल को छुपाकर हँसते हुए पूछा कैसा रहा दिन और कैसी रही इंगेजमेंट?

क्षितिज ने मुस्कुरा कर कहा सब ठीक रहा और तुम परेशान मत होना मैं समझ सकता हूँ कि तुम्हारे मन में बहुत कुछ चला होगा लेकिन शालिनी को इंगित करते हुए बोला वह नहीं आयी थी, विशाल ने उसको नहीं बुलाया था, और अगर वो सामने आ भी जाएगी तब भी यह याद रखना कि "मैं सिर्फ तुम्हारा हूँ" उसके साथ मेरा अब कुछ भी बाकी नहीं है।

कृतिका यह सुनकर एक दम सामान्य होगयी एवं मन ही मन यह सोचकर मुस्कुराने लगी कि क्षितिज उसको कितनी अच्छी तरह से जानता है कि वह परेशान होरही थी।

और सोच रही थी यदि बादल बरस जाते तो क्या होता?

लेखक : अशोक कुमार पचौरी




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

डॉ कृतिका सिंह said

Sundar lekhan vese badal baras jate to kya hota?

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत बहुत आभार डॉ mam... हालाँकि बादल बरसे नहीं - लेकिन बादल बरस जाते तो शायद कहानी का चित्रण कुछ और होता क्युकी मेरा मानना है क्रिया - प्रतिक्रिया को जन्म देती है - तो होसकता है कहानी का सारांश कुछ और होता - यदि आपके अलग विचार हैं तो कृपया प्रकट कर अनुग्रहित करने की कृपा करें

फ़िज़ा said

कहानी के साथ-साथ कविता अच्छा प्रयोग है

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका शुक्रिया छोटी सी कोशिश की थी आपने गौर फ़रमाया बहुत ख़ुशी हुयी - आपि प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद - आपकी प्रतिक्रिया ही कुछ लिखने के लिए प्रेरित करती है और कहीं न कहीं प्रयोग कर बैठता हूँ - आपको पसंद आया धन्य होगया

Arpita pandey said

कहानी और कविता एक साथ वाह

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत बहुत आभार जानकर हर्ष हुआ कि मेरी इस काल्पनिक रचना पर आपका ध्यान गया Mam ,आपकी प्रतिक्रिया से अनुग्रहित हूँ अर्पिता Mam एक छोटा सा प्रयास था कहानी और कविता मिश्रित करने का वही करने की कोशिश की आपके आशीर्वाद की हमेशा चाहत रहेगी प्रणाम आभार!!

Vineet Garg said

बादल बरस जाते तो बारिस होती?

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Ha ji Barish hoti, barsne ka matlab hi yeh hai ki baris hoti

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