इंतजार करती रही मै
न जाने कब संदेश मिले
न एक साल, न दो साल
साल गुजर जाती रही
इंतजार कर करके
कितनी बार पुकारू
खत लिखू कितनी बार
कलम हाथ न आती
कांप रही थी उंगलियाँ
इतनी तो याद है कि नहीं
तेरी माँ बूढी होकर साल भर गयी
दिल बैठ गई मेरी
जाने अनजाने शत्रु भी भेंट जाए
जान - बूझकर तेरी बूढी माँ
की भेंट न करना चाहा
जब तुम छोटे थे तब तेरे
अब्बू जान के खत लिखती थी
उसके देहांत के पश्चात भी
तेरी बारी आ गया
क्या कुछ नहीं हमारा
क्या कुछ न मिले
कोई करोड़पति भी इतना व्यस्त
न रह जाते
कोई बात नहीं है बेटा
एक बात कहना भूली गयी
तेरे नाम जैसे तू भी ईद का चांद
हो गए थे राकेश
इस लम्हे की इंतजार करती रहूं
जब तुम उपलब्धि होगा
एक खत लिख लेना
अपना हाथ पैर मार कर
कसूर किया मैंने ...