ज़िंदगी यूँ ही सताती हैं
रोजाना बहुत रुलाती हैं
जतन करें तो भी उदासी देती हैं
ज़िंदगी यूँ ही सताती हैं...
ऐसे बने वो महात्मा हैं
कभी आशीष, तो देती श्राप हैं
संजोग बनाये ऐसा, ताज्जुब होता हैं
ज़िंदगी यूँ ही सताती हैं...
नादाँ बने मासूमियत भरती हैं
कायर बन डराती भी हैं
शूरवीर बन हसरतें बांटती भी हैं
ज़िंदगी यूँ ही सताती हैं...
बेख़ौफ़ विचरती हैं
बिंदास बने लहराती भी हैं
वीराना भर ख़ामोश बने तनहाई देती हैं
ज़िंदगी यूँ ही सताती हैं…..!!!!!
----स्नेह धारा