चलते फिरते राह में,
यूँ ही मिल गया था कोई,
और यूँ ही फिर,
कुछ बातें हुईं,
वक्त बेवक्त यहाँ - वहाँ,
यूँ ही वो मिलने लगे,
ये सिलसिले बढ़ते गए,
कुछ ख्वाब से,
बुनने लगे हम,
काश वो बस,
ख्वाब ही होते,
ना बिछड़ना होता,
ना मैं उनको कोसता,
ना वो मुझे,
और ना ही किसी को,
तकलीफ होती,
काश वो मुलाकात,
हुईं ही न होती।
----अशोक कुमार पचौरी