इस भरी दुनिया में तन्हाई बहुत।
बाहर मौज अन्दर तबाही बहुत।।
पूछो न हाल इस ठहराव में मेरा।
तुम को छोड़कर यहाँ राही बहुत।।
रोशनी की बात सब कर रहे यहाँ।
इस अँधेरे की सच्चाई साही बहुत।।
मौसम आते हैं और गुजर जाते हैं।
हवा दे रही पल-पल गवाही बहुत।।
तुम्हारी जिद्द में वैसी तासीर नही।
फिर भी लगती क्यों मनाही बहुत।।
आशा लगाए बैठे 'उपदेश' अब भी।
एक इशारे पर होगी वाहवाही बहुत।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद