"ग़ज़ल"
आप ने कर दिया तन्हाई के हवाले मुझ को!
अब यहाॅं कौन है मेरा जो सॅंभाले मुझ को!!
मैं मुंतज़िर हूॅं कि कोई अपना बना ले मुझ को!
आ के दबे पाॅंव कभी मुझ से चुरा ले मुझ को!!
दिल मेरा लूट के पूछते हो क्या बात हुई!
ये तेरी सादगी कहीं मार न डाले मुझ को!!
कल ये आशिक़ न रहे फिर ये ज़माना न रहे!
आज दिल खोल के मेरी जान सता ले मुझ को!!
अब के जो बिछड़े तो शायद फिर मुलाक़ात न हो!
देख ले जी भर के आज देखने वाले मुझ को!!
अगर अश्क हूॅं तो अपनी ऑंखों से बह जाने दे!
मैं तबस्सुम जो लगूॅं होंटों पे सजा ले मुझ को!!
मेरी क़िस्मत में 'परवेज़' अन्धेरे ही अन्धेरे हैं!
जाने क्यूॅं रास नहीं आते हैं उजाले मुझ को!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
The Meanings Of The Difficult Words:-
*मुंतज़िर=इन्तज़ार करने वाला (expectant or one who waits); *अश्क=ऑंसू (tears); *तबस्सुम=मुस्कुराहट (smile); रास=अनुकूल या सुखदाई (suitable).