जिन्हें जीने का अंदाज़ नहीं,
वो करते हैं इश्क़,
उन्हें होता है इश्क,
फिर भी जिन्दगी जीते हैं,
डर के पीछे का आधार है इश्क़,
पर डर को गिराते ही,
सामने दिखती हैं पूरी जिंदगी,
जिंदगी जीने की तकलीफ रखनी थी,
मगर इश्क के मंसूबों में,
पूरी जिंदगी को ले जाता है इश्क़,
इश्क़ का खामियाजा ये कि,
दिल बोझ तले दबता है,
लोग दिल मे मोहब्बत को देखते हैं,
पर सच तो सिर्फ़ ये कि,
दिल सिर्फ धड़कता है,
सचमुच के ख्याल,
किसी साथी,
अपनेपन के,
ये काम तो सिर्फ दिमाग करता,
दिमाग इश्क नहीं,
बस चेतना को जोड़ता है,
वो जानने आया है,
वो बोध के लिए है,
वो खोजी है,
जिंदगी जीता है,
कहां मंसूबे उसे इश्क के दिए हो,
जो भी आया,
पता नहीं जिंदगी के बजाय,
इश्क के रिस्क में रह गया,
पहले पल आसपास देखना था,
दूसरे पल मिले कोई तो,
साथ से उसके साथ में चेतना सामंजस्य रखना था,
फिर जानना था,
सवाल करना था,
क्या हो रहा है,
क्यूँ हो रहा है,
कैसे हो रहा है,
कौन है वो,
क्यूँ है वो,
पर ये जिन्दगी को छोड़कर,
चेतना ऐसी मिलाई,
कि इश्क़ करने लगे,
इश्क होने लगा,
अब जो आता इश्क़ के पास ही जाता है,
इश्क़ हुआ ना हुआ भले ही,
खुद को इश्क समझ,
इश्क़ सा हो जाता है,
अब जिंदगी और चेतना, उसका बोध इक तरफ,
और इश्क़ का सहारा एक तरफ। ।
- ललित दाधीच

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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