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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

पिंजरा

बेशक सोने का हो, पर पिंजरा है पिंजरा

किसी के लिए ये प्रेम की डोरी ,
कोई कहे इसे जीवन की चोरी |
कोई ना समझे इस कैद की पीड़ा ,
पंछी का मन रहे दुख से भीना |

बेशक सोने का हो, पर पिंजरा है पिंजरा

चाहत थी पंख फैलाने की ,
गगन की ऊंचाइयों को छू जाने की |
मन की मन में ही रह गई ,
जीने की चाह भी आँसुओं में बह गई |

बेशक सोने का हो, पर पिंजरा है पिंजरा

आज़ादी एक एहसास है ,
जो हर जीवन की आस है |
हर श्वास की ये एक श्वास है ,
जैसे दीपक में बाती का विश्वास है |

शिल्पी चड्ढा















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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

वन्दना सूद said

वाह वाह बहुत खूब 👌👌👏👏भावनाओं में भीगी हुई रचना

शिल्पी चड्ढा replied

आपका बहुत बहुत धन्यवाद

इक़बाल सिंह “राशा“ said

बहुत बढ़िया शिल्पा जी “पर पिंजरा है पिंजरा” बहुत खूब

शिल्पी चड्ढा replied

बहुत बहुत धन्यावाद

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

क्या खूब लिखा है! हर पंक्ति जैसे आज़ादी की तड़प को जीता-जागता अहसास बना रही है…
“बेशक सोने का हो, पर पिंजरा है पिंजरा” — इस दोहराव ने भावों को और भी गहरा कर दिया।
मन की उड़ान और कैद की पीड़ा को इतनी सशक्त अभिव्यक्ति देना सच में काबिले-तारीफ है! 🙌✨
आदरणीय Mam, को सादर प्रणाम

शिल्पी चड्ढा replied

बहुत बहुत धन्यवाद सर |आपके इन हौसला बढ़ाने वाले शब्दों से हमेशा लिखते रहने की और इस राह पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा मिलती रहेगी |

वेदव्यास मिश्र said

पिंजरा ..भले ही सोने का हो मगर पिंजरा तो है इक पिंजरा..
आजादी की सूखी रोटी ज्यादा आनन्ददायक है बनिस्पत गुलामी की खीर- पूड़ी के !!
शानदार रचना 👌👌

शिल्पी चड्ढा replied

बिलकुल सही कहा सर आपने आज़ादी की बात ही कुछ और है इसकी कीमत तो वही जानते थे जो पूरा जीवन इसके लिए लड़ते रह गये|

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