बेशक सोने का हो, पर पिंजरा है पिंजरा
किसी के लिए ये प्रेम की डोरी ,
कोई कहे इसे जीवन की चोरी |
कोई ना समझे इस कैद की पीड़ा ,
पंछी का मन रहे दुख से भीना |
बेशक सोने का हो, पर पिंजरा है पिंजरा
चाहत थी पंख फैलाने की ,
गगन की ऊंचाइयों को छू जाने की |
मन की मन में ही रह गई ,
जीने की चाह भी आँसुओं में बह गई |
बेशक सोने का हो, पर पिंजरा है पिंजरा
आज़ादी एक एहसास है ,
जो हर जीवन की आस है |
हर श्वास की ये एक श्वास है ,
जैसे दीपक में बाती का विश्वास है |
शिल्पी चड्ढा