जब
जाति और धर्म से ही
उगता है अपराध और आतंक
तो वे कौन-से बुद्धिमान हैं
जो कहते हैं—
अपराधी और आतंकवाद का
न कोई जाति होती है
न कोई धर्म!
तो मैं पूछता हूँ
ऐसे बुद्धिमानों से—
कौन-सा इतिहास पढ़ा है तुमने?
कौन-से प्रमाण उठाए घूमते हो?
क्या नहीं जानते?
धर्म के आधार पर ही
बँटा था ये महान देश
हुआ दर्दनाक
पहलगाम आतंकी हमला
और न जाने कितनी बार
जाति के नाम पर
बहा है निर्दोषों का रक्त।
मैं व्यथित हो उठता हूँ
क्रोध से भर जाता हूँ
जब मेरे प्यारे देश पर
कोई आघात होता है
जब मासूम नागरिक
मारे जाते हैं बेकसूर।
मेरी नज़र में
इस देश के दो सबसे बड़े द्रोही हैं—
एक, भ्रष्टाचारी
और दूसरा
वो जो बुद्धिमत्ता का
नक़ाब ओढ़े फिरते हैं।
अरे भैया
मत ढोओ अपने कन्धों पर
भ्रम का भार
बल्कि उठाओ
तार्किकता की जिम्मेदारी।
- प्रतीक झा 'ओप्पी'
चन्दौली, उत्तर प्रदेश