ये निगाहें ही तो हैं..
किसी को मोहब्बत दिखाई देती है,
तो किसी को नफ़रत !!
किसी को सराफ़त दिखाई देती है,
तो किसी को बग़ावत !!
काश सराफत का कुछ असर हो,
तो बग़ावत स्वमेव खत्म हो जावे !!
मोहब्बत का असर हो कुछ ऐसा,
नफ़रत ही जमाने से खत्म हो जाये !
क्या कभी ऐसा होगा ??
बिलकुल ऐसा हो सकता है !!
यक़ीनन ऐसा ही होगा !!
आज नहीं तो कल,
कल नहीं तो परसों !!
परसों नहीं तो हज़ार साल के बाद,
मगर नफ़रतों की बस्ती में,
प्रेम का सूर्योदय होगा ज़रूर !!
- वेदव्यास मिश्र
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