"ग़ज़ल"
कट्टरपंथियों! "डिवाइड ऐण्ड रूल" की पाॅलिसी भारत में नहीं चलने वाली!
तुम चाहे जितनी भी कोशिश कर लो तुम्हारी दाल यहाॅं नहीं गलने वाली!!
जम्हूरियत को तो ले डूबे तुम अब कम-से-कम एकता में ज़हर मत घोलो!
हमारी एकता हमारे दिलों में बसी है यहाॅं से नहीं ये निकलने वाली!!
स्वच्छ भारत अभियान और विकास के नारे सारे के सारे झूठे हैं प्यारे!
ये लफ़्फ़ाज़ों और जुमले-बाज़ों की सरकार है मासूम जनता को छलने वाली!!
पहनावे पे ऐतराज़ खाने पे बंदिश है इक ख़ास तबक़े से सरकार को रंजिश!
ये ज़ालिम बे-रहम हिटलरी सरकार है अक़लियतों को कुचलने वाली!!
राजनीति चलेगी धर्म के दामन को थाम कर? कब तक मिलेगा वोट मंदिर के नाम पर?
झूठे और खोखले वादों से अब ये जनता और नहीं है बहलने वाली!!
वो जो मर रहा निर्दोष है मन में सब के रोष है अब हर तरफ़ असंतोष है!
'परवेज़' अब नहीं ये चलने वाली ये सरकार बहुत जल्द है बदलने वाली!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad