मैं नशे में हूं, इसका मुझे पता नहीं, मैं नशे में हूं।
काली अंधियारी का मैं हाथ पकड़ घूम रहा,
प्रकाश को आभास नहीं मैं नशे में हूं।।
इंदु का दीपक जल रहा, भास्कर को पूछा नहीं
मैं नशे में हूं।।
कांटों की मुस्कान भरी, लतांत में मधुपान नहीं
मैं नशे में हूं।।
कटुता की आस सही, मधु वचनों की प्यास नहीं
मैं नशे में हूं।।
विपदाओं की राह सही , सरलता में जीता नहीं
मैं नशे में हूं।।
परायो से रिश्ता सही, अपनों पर विश्वास नहीं
मैं नशे में हूं।।
दुःख का योगी सही, सुख रोगी नहीं
मैं नशे में हूं।।
प्राचीनता में अधिकता सही, नवीनता न्यूनता नहीं
मैं नशे में हूं।।
विफलता का प्यार सही, सफलता को छूता नहीं
मैं नशे में हूं।।
वक्ता की आन सही, श्रोता के कान नहीं
मैं नशे में हूं।।
लघुता की मार सही, महानता स्वीकार नहीं
मैं नशे में हूं।।
दानी का दान सही, दीनों से प्यार नहीं
मैं नशे में हूं।।
अधिकार की चाह सही, कत्तर्व्यो से प्यार नहीं
मैं नशे में हूं।।
दुर्जन का गुलाम सही, सज्जन का दास नहीं
मैं नशे में हूं।।
मिलावट की बंधुता सही, पवित्रता की इच्छा नहीं
मैं नशे में हूं।।