"ग़ज़ल"
ये मोहब्बत है तोहफ़ा सनम आप का!
है नवाज़िश इनायत करम आप का!!
आप यूॅंही जो उल्फ़त लुटाती रहीं!
चूम लूॅंगा मैं झुक के क़दम आप का!!
ग़ैर-मुमकिन है मैं बे-वफ़ाई करूॅं!
मेरे हमदम है ये बस वहम आप का!!
अपनी हर इक ख़ुशी आप पर वार के!
मैं गले से लगा लूॅंगा ग़म आप का!
मेरी 'परवेज़' है बस यही आरज़ू!
मैं ही आशिक़ बनूॅं हर जन्म आप का!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद