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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

बस इतना बता दे ऐ मानसून - हास्य गीत - वेदव्यास मिश्र

बस इतना बता दे ऐ मानसून,
कब लौटोगे फिर से मेरी भी ज़िन्दगी में !!

सुना है चालीस में लौटते हो,
बयालीस में फिर चांस है दूजा !!
पैंतालीस करते-करते..
पचपन भी निकल ना जाये कहीं !!
हर दिन है इन्तज़ार ..
बस तेरा है इन्तज़ार..
मुझे एक नाज़नी का..
हाय एक रूपकली का !!
जिसे देखके दिल फिर धड़के,
और मन में हो हलचल फिर से !!
बस इतना बता दे बदली,
कब बरसोगे मुझमें फिर से !!


अब जीवन हो गई है न्यूट्रल,
गेयर खराब हैं सारे !!
आगे बढ़ाओ पीछे जात है..
पीछे बढ़ाओ आगे जात है !!
माॅडल हो गई बहुत पुरानी,
गाड़ी में रफ्तार नहीं है !!
सोच रहा हूँ बदल ही डालूँ ,
गाड़ी नया अब ले ही डालूँ !!
रिफिल पुरानी न लिखती शायरी,
नई रहे तो फिलिंग आयेगी !!
नज़र लगे ना जवानी पे मेरे,
इसीलिए हूँ डाई लगाता !!
नैन बिछाये कलम लिये अब,
कब से मैं तैयार हूँ ..तैयार हूँ !!
(😍तभी पत्नी जी पीछे से आ चुकी हैं और कवि महोदय का सुर-ताल चेन्ज होना स्वाभाविक है 😍)
बस इतना बता दे पगली..
बस इतना बता दे जानू..
बस इतना बता दे दिलबर..
तुम मानसून हो मेरी,
तुम ही हो सावन मेरी !!
कब प्यार करोगे मुझको,
पहले की तरह !!


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (12)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

हास्य से भरपूर बहुत खूब रचना श्रीमान आचार्य जी प्रणाम स्वीकार करें!!

वेदव्यास मिश्र said

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' जी, स्वागत वेलकम अभिनंदनम् .. 🌿🌿

वेदव्यास मिश्र said

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' जी, शुभाशीष नमन अनुज श्री !! हमारे यहाँ अभी बहुत ही ज्यादा गर्मी है !! बारिश एक दो बार विज्ञापन देकर जा चुकी है नवता के बाद..अब उमस ज्यादा है और अलीगढ़ के क्या हाल हैं अभी !! आपके यहाँ मानसून का क्या हाल है बताइयेगा ज़रूर !!

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

अलीगढ का हाल भी बहुत बेहाल है सच कहूं आचार्य जी पारा बहुत गरम है यहाँ भी - और बारिस यहाँ भी बस विज्ञापन देने का वादा करती हुयी नज़र आती है बिलकुल किसी नेताजी के चुनावी भाषण की तरह पर ना ही नौ मन तेल हो रहा है ना ही बारिस, वारिद नज़र आते हैं बार बार हर रोज, लेकिन परिणाम शुन्य है जिसका प्रताप यह है कि बाजार जाना तो दूर की बात होगयी है कमरे से बाहर निकलने के लिए भी सोचना पड़ता है, अंत में बिजली रानी यदि गायब होजायें तो फिर पिताजी के कमरे में जाकर चर्चा होती है कि हमारी बिजली रानी गयी हैं या सबकी क्युकी ऐसा अक्सर होता रहता है कि किसी एक घर की बिजली रानी गायब होजाती हैं और बाकी सब की आती रहती हैं उस परिस्थिति में एक सज्जन हैं उनको खोजना पड़ता है जो कि हर वक़्त जब भी खोजने जाओ या फ़ोन करो तो खाना खाते हुए सुनाई देते हैं - बाकी आपका आशीर्वाद है पिछले 4-५ दिनों से बिजली रानी की कृपा है कि गायब नहीं हो रही हैं अन्यथा रातों में सज्जन इंसान को ढूंढ़कर बिजली रानी को दोबारा से बुलवाना जैसे कबड्डी के खेल में प्रतिद्वंदी से एक पॉइंट जीतकर लाने के बराबर हो रखा है महोदय!!

वेदव्यास मिश्र said

अशोक कुमार पचौरी ' जी, आपकी पाती पढ़कर ये पता चला कि गर्मी और बेचैनी सेम टू सेम है..वही विज्ञापन, वही कबड्डी..वही आंख-मिचौली बिजली की हो या पड़ोसन की..दिक्कत तो बनी ही रहती है भाई साहब !! इस गर्मी से अगर राहत है तो सिर्फ साहित्यिक चर्चा से....सबसे बड़ी बात है ..जहाँ विचार से विचार मिला..वहाँ बहुत बड़ी राहत है !! ओरिजिनल टेम्परेचर 42 ही है मगर सीम्स लाइक ज्यादा है ..ह्यूमिडिटी की वजह से !! बिजली रानी..बड़ी सयानी है और मतलबी भी हैं !! मजा आता है हमें सताकर उन्हें !! 😍😍

फ़िज़ा said

Waah...garmi ki itni Sundar paribhasa.

प्रतिभा सिंह said

उत्तम हास्य रचना जिस तरफ से देखा जाये, पढ़ा जाए, हास्य उमड़ रहा है उस पर ये गर्मी की चर्चा बहुत खूब

वेदव्यास मिश्र said

फ़िज़ा जी, आदाब नमन सुप्रभात !! सच ही तो है मैम, आज इन्सान, इन्सान से जितना ही दूर जा रहा है..गर्मी उतनी ही बढ़ रही है !! सोचने वाली बात है, पहले लाइट नहीं था और हम लोग गर्मी के दिनों का मजा लेते थे..पके हुए निमोली ( नीम का फल) खाते थे !! कंचे खेलते थे, घूमते थे और शाम होते ही बड़े-बुजुर्गों के साथ सामूहिक रूप से खुली जगह में खाट बिछाकर सोते थे !! बाकी बातें फिर कभी !! 🙏🙏💜💜🙏🙏

वेदव्यास मिश्र said

प्रतिभा सिंह जी, आप लोगों की उपस्थिति और ये साहित्यिक चर्चा ,समीक्षा निश्चित ही तापमान में कमी ला रही है !! अद्भुत समागम साहित्यिक संतों का !! जहाँ आपस में प्रेम हो वहाँ ये गर्मी बिलकुल भी मायने नहीं रखती !! हाँ,मानसून का मज़ा अलग ही है !! मुझे तो आज भी बचपन याद आता है और बारिश में भी जाना हूँ !! नमन सुप्रभात !! 🙏🙏💜💜🙏🙏

वेदव्यास मिश्र said

प्रतिभा सिंह जी, कृपया लास्ट की लाइन को आंशिक सुधार कर पढियेगा !! और यादों की बारिश में भीग भी जाता हूँ !!

विपिन कुमार said

Best And Most hilarious line of poem '😍तभी पत्नी जी पीछे से आ चुकी हैं और कवि महोदय का सुर-ताल चेन्ज होना स्वाभाविक है 😍'

वेदव्यास मिश्र said

विपिन कुमार जी, पत्नी जी आँधी से कम नहीं भाई साहब..कभी-कभी अच्छे-खासे मानसून को बहा ले जाती है 😍😍 ये पत्नी है..सब जानती है..ये पत्नी है 😁😁 आभार विपिन जी !!

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