उल्लू जैसी दृष्टि जिनकी
बुद्धि बड़ी ही चंगी है
धर्म ध्वजा तले लगाकर आसन
बैठे कुछ पाखंडी हैं
आलीशान महल में रहना
और दे शिक्षा त्याग की
जीते हैं विलास भरा जीवन
और दें ज्ञान अनुराग की
राग रंग में डूबे हुए ये
आदत से बहुरंगी हैं
धर्म ध्वजा तले लगाकर आसन
बैठे कुछ पाखंडी हैं
धन दौलत को व्यर्थ बताते
धरम के ठेकेदार हैं
मुख में हैं अनमोल वाणी में
हृदय में व्यभिचार है
आंखों में तो हवस भरी है
हृदय बड़ा ही घमंडी है
धर्म ध्वजा तले लगाकर आसन
बैठे कुछ पाखंडी हैं
भगवा वस्त्र तो भारतवर्ष की
संस्कृति की पहिचान है
पर ये असाधू पहन के चोला
कर देते बदनाम हैं
नहीं धरम से लेना देना
पापों की ये झंडी हैं
धर्म ध्वजा तले लगाकर आसन
बैठे कुछ पाखंडी हैं
जनमानस की आंखों में ये
धूल झोंकना जानतें हैं
रसूखदारों की संरक्षण को
अपनी पूंजी मानते हैं
पनप रहे इनकी छाया में
अपराधों की मंडी है
धर्म ध्वजा तले लगाकर आसन
बैठे कुछ पाखंडी हैं।।
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




