बाल कविता : मक्की की रोटी सरसों का साग....
जलता हो चूल्हे
पर धीमी सी आग
पकता हो फिर
सरसों का साग
बन रही हो वहां
वे छोटी छोटी
साथ में घी और
मक्की की रोटी
अगर ये खाना
सभी को मिले
चेहरा सभी का
बहुत ही खिले
चेहरा सभी का
बहुत ही खिले.......