कापीराइट गजल
कब आहें निकली दिल से यह भी तुम को याद नहीं
कब, गम ने थामा दामन, यह भी तुम को याद नहीं
तुझे खुश रहने के सिवा था मतलब और नहीं कोई
गम सहता रहा मैं खुशियों में, ये भी तुम को याद नहीं
तुम्हारी मुस्कान की खातिर हम चलते रहे अंगारों पर
हम हर चाहत पर खाक हुए ये भी तुम को याद नहीं
हर बार खुशी देते-देते यह जख्म हरे हो जाते थे
मरहम की जगह जख्म दिए ये भी तुम को याद नहीं
जब भी मेरे दिल को तूने, छेङा यूं गम के तारों से
हर आह पे वाह कहा तुम ने ये भी तुम को याद नहीं
तेरे, ख्वाबों की खातिर, अपने ख्वाबों को तोङ दिया
कब-कब तूने दिल को तोङा ये भी तुम को याद नहीं
जब, तुम छोङ गए हम को, मर के जिये कैसे यादव
क्यूं, हम तन्हाई में डूब गए, ये भी तुम को याद नहीं
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है