चलन अब ज़माने का बदला हुआ,
लोग हसते है अपनी हसी छोड़कर ,
दूसरों की हसी का भरोसा नही,
कोई कैसे किसी का सहारा बने,
अब सहारे का कोई सहारा नही,
लोग जीते हैं अपनी जमी बेचकर ,
दूसरों की जमी का भरोसा नही,
साँस बदली हुई आश बदली हुई,
जिंदगी बन गई अब किराये का घर,
ऐसे घर मे किसी का भरोसा नही, ..
चलन अब ___________________.
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