ज़िन्दगी की हक़ीक़त यहाँ कुछ और है।
हर सूरत में नासमझ रहने का शोर है।।
नासमझी के दरमियाँ समझदारी ख़ामोश।
नज़र आता है जैसा, कुछ वैसे का जोर है।।
हर चेहरे पर चेहरा नज़र आता नक़ाबपोश।
समझ पाने में दिक्कत माजरा कुछ और है।।
कभी-कभी समझ ही नहीं आती ज़िन्दगी।
उलझती सुलझती ये ज़िन्दगी की डोर है।।
कभी कहकर देखा कभी चुप रहकर देखा।
नासमझ निकले 'उपदेश' रात गई भोर है।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




