पावों में कितने छाले ये गिनते नहीं कभी
दिन रात के मुसाफिर हैं रुकते नहीं कभी
यादों का कारवां यह सांसो का कारवां है
ये होते नहीं अकेले और थकते नहीं कभी
जब आसमां से टूटके गिरते हैं कुछ सितारे
कुछ जगनुओं की भीड़ में छुपते नही कभी
खिलते सभी गुलाब ख़ुद कांटों की सेज पर
रहते हैं ख़ुद उदास मगर बिखरते नहीं कभी
है दास मुहब्बत में हासिल तो नहीं कुछ भी
मिल जाएँ बिछड़ जाएँ सब हँसते नहीं कभी ••
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