
नारी है शक्ति, नारी है नूर,
नारी के दम से चलता है सृष्टि का दौर।
कभी है गंगा, कभी है झांसी,
कभी ममता की मूरत है।
कोमल है फिर भी कमजोर नहीं,
सहनशील है मगर मजबूर नहीं।
अपने अस्तित्व की पहचान है नारी,
संघर्षों में खिली अभिमान है नारी।
घर की लक्ष्मी, समाज की रेखा,
जो ठान ले, वो कर दे लेखा।
जन्म दे, सृष्टि सँवारे,
हर अंधियारे में दीप जलाए।
वो खेतों की मिट्टी में मेहनत करे,
कार्यालयों में सपनों की इमारत गढ़े।
चूल्हा-चौका सँभाले अगर,
तो अंतरिक्ष तक कदम बढ़ाए मगर।
न रोक सकोगे, न झुका सकोगे,
अबला नहीं, सबला कहाओगे।
अब हर दिन नारी का होगा,
अब सम्मान का सूरज चमकेगा।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




