जिन्दगी के पन्ने पलटने की जुर्रत में।
मिटाना चाहते रहे यादो को फुर्सत में।।
तमन्ना अधूरी और अधूरी कहानी को।
सम्पूर्ण लिखना चाहते अगले मुहूर्त में।।
साथ चाहिए उसका भी और मेरा भी।
ज़माना कैसा भी रहे हर एक सूरत में।।
बिना मतलब के कोई आए भी कैसे।
मतलब छुपाने का हुनर उसी मुरत में।।
अपना बनाकर छोड़े ख्याल दूर से रखे।
पता बखूबी 'उपदेश' उसकी फितरत में।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद