कापीराइट गजल
याद दिलाने के लिए आ
याद दिलाने के लिए आ जो गम भुला न पाए हम
तू मुझे रुलाने के लिए आ, अगर रूला न पाए तुम
दुखती रग पे ऐसे रख दो उंगली कि दर्द बढ़ जाए
दिल में दर्द जगाने को आ, अगर जगा न पाए तुम
अब यूं सताने में हमको , गर आता है मजा तुम को
मुझे फिर सताने के लिए आ, गर सता न पाए तुम
इस हंसी मोहब्बत, का भरम कुछ देर तो रहने देते
मुझे गम में डुबोने को आ, अगर डुबा न पाए तुम
तुम को तो मतलब है इस दिल में आग लगाने से
दिल में आग लगाने को आ, अगर लगा न पाए तुम
क्या नाम दिया है तूने, हम दोनों के इस रिश्ते को
सब को बताने के लिए आ, अगर बता न पाए तुम
अभी तो मौजूद हैं हम अय महबूब तेरे ही शहर में
नया जख्म, देने के लिए आ, अगर दे नहीं पाए तुम
तेरी लाख कोशिशों के बाद भी रुसवा न हुए हम
कोई इल्ज़ाम लगाने को आ, अगर लगा न पाए तुम
हर एक जख्म में नजर आती है तुम्हारी सूरत यादव
उसी जख्म को दुखाने आ, अगर दुखा न पाए तुम
लेखराम यादव
( मौलिक रचना)
सर्वाधिकार अधीन है