याद आती है मुझको वो बीती हुई कहानी
खोया हुआ बचपन वो खोई सी जवानी
जिस नदी के किनारे गुजारा था बचपन
वो पानी के रेले और वो हंसता हुआ बचपन
वो प्यारी सी हंसी वो दरिया का पानी
याद आती है ......................
वक्त गुजारने के लिए हम खेलते थे जहां
अपने बचपन में खुशियां घोलते थे जहां
वो होली के रंग वो गुब्बारों का पानी
याद आती है .......................
चलते थे ठसक से नाव के साथ-साथ
करते थे हम मस्ती दोस्तों के साथ-साथ
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी
याद आती है ........................
छोड़ करके ये बचपन जब जवां हो गए
जवानी की मोजों में हम कहीं खो गए
वो हंसी दुनियां मेरी वो ख्वाबों की कहानी
याद आती है .........................
रोज मेलों की रौनक रोज सपने सुहाने
उन से मिल ने के हम ढ़ूंढ़ने थे बहाने
रोज पनघट पर मेले वो कुंए का पानी
याद आती है ........................
हम सपनों की खातिर शहर में आ गए
काम और दाम इस जिगर पर छा गए
अब वक्त की धूल में खो गई ये जवानी
याद आती है ........................
बुलाती थी मुझे वो खत रोज लिख कर
रोकते रहे हम उनको मजबूरी लिख कर
यूं बरसती थी आंखें जैसे बारिश का पानी
याद आती है .........................
जिम्मेदारियों से मगर यूं सरोबार थे हम
एक हंसी जिन्दगी के तलबगार थे हम
वो अधूरे से ख्वाब वो अधूरी सी कहानी
याद आती है ........................
इस कहानी को जो दोहराएगा एक दिन
भंवर में प्यार के वो फंस जाएगा एक दिन
याद आएगी यादव तेरी फिर से वो कहानी
याद आती है ........................
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है