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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

याद आती है मुझको वो बीती कहानी

याद आती है मुझको वो बीती हुई कहानी
खोया हुआ बचपन वो खोई सी जवानी

जिस नदी के किनारे गुजारा था बचपन
वो पानी के रेले और वो हंसता हुआ बचपन
वो प्यारी सी हंसी वो दरिया का पानी
याद आती है ......................

वक्त गुजारने के लिए हम खेलते थे जहां
अपने बचपन में खुशियां घोलते थे जहां
वो होली के रंग वो गुब्बारों का पानी
याद आती है .......................

चलते थे ठसक से नाव के साथ-साथ

करते थे हम मस्ती दोस्तों के साथ-साथ
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी
याद आती है ........................

छोड़ करके ये बचपन जब जवां हो गए
जवानी की मोजों में हम कहीं खो गए
वो हंसी दुनियां मेरी वो ख्वाबों की कहानी
याद आती है .........................

रोज मेलों की रौनक रोज सपने सुहाने
उन से मिल ने के हम ढ़ूंढ़ने थे बहाने

रोज पनघट पर मेले वो कुंए का पानी
याद आती है ........................

हम सपनों की खातिर शहर में आ गए

काम और दाम इस जिगर पर छा गए

अब वक्त की धूल में खो गई ये जवानी
याद आती है ........................

बुलाती थी मुझे वो खत रोज लिख कर
रोकते रहे हम उनको मजबूरी लिख कर
यूं बरसती थी आंखें जैसे बारिश का पानी

याद आती है .........................

जिम्मेदारियों से मगर यूं सरोबार थे हम
एक हंसी जिन्दगी के तलबगार थे हम
वो अधूरे से ख्वाब वो अधूरी सी कहानी
याद आती है ........................

इस कहानी को जो दोहराएगा एक दिन

भंवर में प्यार के वो फंस जाएगा एक दिन
याद आएगी यादव तेरी फिर से वो कहानी
याद आती है ........................

- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

Vineet Garg said

Uttam rachna yadon ka samndar ankhon ke samne lahrein uchalne laga

Lekhram Yadav replied

धन्यवाद सहित नमस्कार विनीत गर्ग जी। जब पुरानी यादें सामने आती हैं तो कुछ ऐसा ही महसूस होता है।

विजय प्रकाश श्रीवास्तव said

अपने बचपन को आप की रचना के माध्यम से देखा, जिया और महसूस किया. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌

Lekhram Yadav replied

Dear Vijay Parkash Shrivastav ji welcome with thanks.

Ankush Gupta said

Waah bahut hi sundar geet anandit kar diya

Lekhram Yadav replied

My dear Ankush Gupta ji welcome with thanks.

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

आप तो आप हैं यादव सर कभी मस्ती कभी हसगुल्ले और अब कागज़ की कश्ती बारिश का पानी, याद आती है मुझको वो बीती कहानी, आज तो स्कूल के पहले दिन की याद दिला दी आपने बारिश में कागज़ की नाव बनाकर चलना चाहता था लेकिन नाव नहीं बनानी आती थी, साथियों से सीनियर्स से बोलै पर वो अपनी अपनी नाव में मगन थे, और मैं रो पड़ा था, बाद में फिर नाव बनाना सीख लिया था जब अर्धवार्षिक परीक्षा सर पर सवार थीं तब मेरे दोस्त शिवकुमार ने सिखाया भले ही लालच सही स्वार्थ सही लेकिन एक अच्छा अनुभव रहा उसके साथ कागज की नाव बनाना सीखने का aur ab aapke sath ke anubhav ke kya hi kahne anand hi anand

Lekhram Yadav replied

सर धन्यवाद सहित नमस्कार। ये जिन्दगी है ही ऐसी कभी ऐसा रंग दिखाती कभी वैसा। हर रंग का अपना रूप और स्वाद होता है। तो क्यों न इस रूप और रंग का जमकर लुत्फ उठाया जाए।

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