महबूब मेरे तुम भी कमाल करते हो
कभी हमें हॅंसाते हो, तो कभी खुद बहुत हॅंसते हो,
फिर क्यों अचानक चेहरे पर अपने उदासी लेआते हो। समझ ना आये तुम मुझे,
मेरे महबूब, तुम भी कमाल करते हो।
कभी बागों में जाकर फूलों से बातें करते हो
तो कभी उन्हें दर्द ना हो इसलिए किसी को उन्हें
छुने नहीं देते हो,
फिर क्यों अचानक उनसे रूठकर,तोड़ उन्हें पैरों
से कुचल देते हो।
समझ ना आये तुम मुझे,
मेरे महबूब, तुम भी कमाल करते हो।
कभी हमसे बातें बहुत करते हो,कभी हमसे
प्यार बहुत करते हो,
फिर क्यों अचानक छोड़ हमें यूं दूर चले जाते हो।
समझ ना आये तुम मुझे,
मेरे महबूब तुम भी कमाल करते हो।
कभी पागलपंती तुम बहुत करते हो
कभी समझदारी बहुत दिखाते हो,
फिर क्यों तुम्हारी सी ही हमारी पागलपंती और
समझदारी को दर किनार तुम करते हो।
समझ ना आये तुम मुझे,
मेरे महबूब, तुम भी कमाल करते हो।
~ रीना कुमारी प्रजापत