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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

वो हार गई मैं जीत गई

आज वो मुझे भूल गई
आज वो मुझे भूल गई,
आज वो हार गई मैं जीत गई।
बचपन से जवानी तक का तय किया था साथ सफ़र,
एक दिन ऐसा आया मोड़ ज़िंदगी में
कि रास्ते हो गए अलग-अलग।

कभी-कभी रास्तों में टकरा जाया करते थे
कभी-कभी रास्तों में टकरा जाया करते थे, पर पता नहीं क्यों?
जो खुशी उससे मिलकर हमे होती थी
उसकी रत्ती भर खुशी भी उसके चेहरे पर
ना होती थी।

बरसों पहले एक शर्त लगाई थी उसने हमसे
बरसों पहले एक शर्त लगाई थी उसने हमसे,
आज वो हार गई मैं जीत गई
उसका उस शर्त को लगाना बचपना था
पर उसकी शर्त को क़ुबूल करना मेरा विश्वास था।

शायद भूल गई वो उस शर्त को आज
शायद भूल गई वो उस शर्त को आज,
पर क्या फ़र्क पड़ता है
जब याद ही नहीं रहे उसे हम आज।

समझ नहीं आया जीत का जश्न मनाऊं या
करूं उसके भूल जाने का ग़म
समझ नहीं आया जीत का जश्न मनाऊं या
करूं उसके भूल जाने का ग़म,
आज वो हार गई दोस्ती निभाने में और
जीत गए उसे याद करने में हम।

जा रही है आज वो यहाँ से
जा रही है आज वो यहाँ से,
जानते हैं एक बार भी उसे याद नहीं आये होंगे हम।
💐✍️ रीना कुमारी प्रजापत 💐








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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

कमलकांत घिरी said

अहा! क्या खूब लिखा दीदी जी, ये शर्त आप हार जाती तो हमें बड़ा अच्छा लगता.. बहुत ही मार्मिक दृश्य है और अक्सर ऐसा ही होता है वक्त के साथ दोस्त, दोस्त को भूल ही जाते हैं, बहुत ही अच्छा लिखा आपने👌👌👏🙏

रीना कुमारी प्रजापत replied

Thanku so much 🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut khoob Mam, bahut sundar rachna kaafi dino bad padhne ko mila.

रीना कुमारी प्रजापत replied

आप मेरी रचना पर आए और पढ़ा आभार आपका 🙏🙏प्रणाम

श्रेयसी said

Bahut khoob. Aap kaisi hain

रीना कुमारी प्रजापत replied

शुक्रिया, ठीक हूं 🙏

Sanjay Srivastva said

हार-जीत..... उम्दा मूल्यांकन 👌

रीना कुमारी प्रजापत replied

Thanks

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