आज वो मुझे भूल गई
आज वो मुझे भूल गई,
आज वो हार गई मैं जीत गई।
बचपन से जवानी तक का तय किया था साथ सफ़र,
एक दिन ऐसा आया मोड़ ज़िंदगी में
कि रास्ते हो गए अलग-अलग।
कभी-कभी रास्तों में टकरा जाया करते थे
कभी-कभी रास्तों में टकरा जाया करते थे, पर पता नहीं क्यों?
जो खुशी उससे मिलकर हमे होती थी
उसकी रत्ती भर खुशी भी उसके चेहरे पर
ना होती थी।
बरसों पहले एक शर्त लगाई थी उसने हमसे
बरसों पहले एक शर्त लगाई थी उसने हमसे,
आज वो हार गई मैं जीत गई
उसका उस शर्त को लगाना बचपना था
पर उसकी शर्त को क़ुबूल करना मेरा विश्वास था।
शायद भूल गई वो उस शर्त को आज
शायद भूल गई वो उस शर्त को आज,
पर क्या फ़र्क पड़ता है
जब याद ही नहीं रहे उसे हम आज।
समझ नहीं आया जीत का जश्न मनाऊं या
करूं उसके भूल जाने का ग़म
समझ नहीं आया जीत का जश्न मनाऊं या
करूं उसके भूल जाने का ग़म,
आज वो हार गई दोस्ती निभाने में और
जीत गए उसे याद करने में हम।
जा रही है आज वो यहाँ से
जा रही है आज वो यहाँ से,
जानते हैं एक बार भी उसे याद नहीं आये होंगे हम।
💐✍️ रीना कुमारी प्रजापत 💐
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




