पाषाण मन टकरा रहे।
आभास उनको भी रहे।
उम्मीदो से निकली चिंगारियां,
सुबकते दो दिल रहे।
चिनगारियों को आंकने में,
दोनों मुफ़लिसी से रहे।
सम्भलने का मौका नही,
'उपदेश' ज्वालामुखी रहे।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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आभास उनको भी रहे।
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चिनगारियों को आंकने में,
दोनों मुफ़लिसी से रहे।
सम्भलने का मौका नही,
'उपदेश' ज्वालामुखी रहे।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद