औरत ताे कल दासी थी आज भी दासी है,
अमावश्य के दिन न क हाे पूर्णिमासी है।।१।।
इस जग में नारी ने क्या क्या न किया,
मर्द काे अपने काेख से जन्म दिया।।
फिर उसने बाेलना सिखाया,
उंगली पकड चलना सिखाया।।
ये सब भूलना मर्द की बदमासी है,
औरत ताे कल दासी थी आज भी दासी है।।२।।
चाैबिस घन्टे सेबा करती रहती,
वह बेचारी चुप-चाप सब कुछ सहती।।
इतना करके भी नहीं पाती प्यार,
उसी के साथ हाेता घरेलु हिंसा अत्याचार।।
गले में उसकी अभी भी फांसी है,
औरत ताे कल दासी थी आज भी दासी है।।३।।
मां बहन और पत्नी बन कर नारी आई ,
फिर भी वह सुख और शान्ति कभी न पाई।।
उसकाे दिखावे के लिए देवि का रुप दिया,
भित्र ही भित्र...पर उसका शाेषण किया।।
इसी कारण से ही वह बहुत उदासी है,
औरत ताे कल दासी थी आज भी दासी है।।४।।
घर के अन्दर हाे या बाहर,
नारी के साथ कहीं भी नहीं शिष्टचार।।
जहां पर भी रहे सिर्फ उसे डर है,
अपना घर भी उसके लिए बेघर है।।
नारी हाेती काेमल...वह ताे प्यार की प्यासी है,
औरत ताे कल दासी थी आज भी दासी है।।५।।
समाज और देश में उसका बडा याेगदान है,
सब से बढ कर वह ताे बडी महान है।।
मर्द के दबाव से फिर भी वह निचे है,
उसे आगे बढ़ाओ बहुत अभी पीछे है।।
कमजाेर न समझाे हिम्मती और साहसी है,
औरत ताे कल दासी थी आज भी दासी है।।६।।
----नेत्र प्रसाद गौतम