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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

Prem me murkh banna kya murkhta h

लोग कहते हैं—
“प्रेम में मत पड़ो, मूर्ख बन जाओगे!”
मैं कहता हूँ—
“अगर प्रेम में बुद्धिमान बनना है,
तो फिर प्रेम ही क्यों करना?”

प्रेम कोई सौदा नहीं,
जो नफे-नुकसान का हिसाब रखे,
ये तो बस एक छलांग है,
जहाँ गिरने वाला ही उड़ने का सुख पाता है।

बुद्धिमानों ने प्रेम को तौला,
कभी जाति में, कभी धर्म में,
कभी पैसे में, कभी ऊँच-नीच में।
पर जो मूर्ख थे,
उन्होंने बस एक आँखों में झाँका,
और प्रेम में विलीन हो गए!

मीरा मूर्ख थी, तभी कृष्ण में खो गई,
राँझा मूर्ख था, तभी हीर की धड़कन बन गया,
शिरीं-फरहाद, लैला-मजनूं,
सब दुनिया की नज़र में मूर्ख थे।
पर जो दुनिया की नज़र में समझदार थे,
उनका नाम किसी को याद है क्या?

अगर प्रेम में मूर्ख बनना पागलपन है,
तो फिर सबसे बड़े ज्ञानी वे ही हैं,
जो प्रेम में डूबकर ख़ुद को खो चुके हैं।

अब सोच लो—
बुद्धिमान बनकर प्रेम को समझना है?
या मूर्ख बनकर प्रेम को जीना है?




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Ji bilkul spasht kar diya aapne ki Buddhiman wahi hai jo murkh bankar prem ko ji leta hai... Bahut khoob spashtata ...Saadar Pranam 🙏🙏

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