लोग कहते हैं—
“प्रेम में मत पड़ो, मूर्ख बन जाओगे!”
मैं कहता हूँ—
“अगर प्रेम में बुद्धिमान बनना है,
तो फिर प्रेम ही क्यों करना?”
प्रेम कोई सौदा नहीं,
जो नफे-नुकसान का हिसाब रखे,
ये तो बस एक छलांग है,
जहाँ गिरने वाला ही उड़ने का सुख पाता है।
बुद्धिमानों ने प्रेम को तौला,
कभी जाति में, कभी धर्म में,
कभी पैसे में, कभी ऊँच-नीच में।
पर जो मूर्ख थे,
उन्होंने बस एक आँखों में झाँका,
और प्रेम में विलीन हो गए!
मीरा मूर्ख थी, तभी कृष्ण में खो गई,
राँझा मूर्ख था, तभी हीर की धड़कन बन गया,
शिरीं-फरहाद, लैला-मजनूं,
सब दुनिया की नज़र में मूर्ख थे।
पर जो दुनिया की नज़र में समझदार थे,
उनका नाम किसी को याद है क्या?
अगर प्रेम में मूर्ख बनना पागलपन है,
तो फिर सबसे बड़े ज्ञानी वे ही हैं,
जो प्रेम में डूबकर ख़ुद को खो चुके हैं।
अब सोच लो—
बुद्धिमान बनकर प्रेम को समझना है?
या मूर्ख बनकर प्रेम को जीना है?

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




