वो अपना सा वक़्त था, अपनी सी थी मुहब्बतें..
कांधे पर हाथ था उसका, थी फुर्सतें ही फुर्सतें..।
दिन भी रचता था, दिनभर में रूप कई अलबेले..
साथ था दिन–रात का, मगर खत्म हुई ना बातें..।
ना दिखावे का शौंक था, न छुपाने की कोई फिक्र..
सबमें था सब्र था इतना, आके खड़ी हुई न जरूरतें..।
ख्वाहिशें थीं मगर, सपनो से ज़ियादा बड़ी नहीं थी..
कोई खाली आंगन में रख जाता, बेहिसाब बरकतें..।
मैने दाने डाले गौरैया को, पानी का दिया है प्याला..
फ़िर इश्तहारों में लिखकर, ये कौन रख गया नफरतें..।
पवन कुमार "क्षितिज"


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







