मन की गहरी दूरियों को पाटता है कौन
गैर की मजबूरियों को बांटता है कौन।।
इन अंधेरी खाइयों में रौशनी तो कीजिए
कितने विषधर पल रहे जानता है कौन।।
सत्य क्या है झूंठ क्या किसको है परवाह
पाप क्या है पुण्य क्या अब मानता है कौन।।
रूप दौलत मसनदें हैं बस बडी नेमत यहां
सुबहा दस्तक दे रही मगर जागता है कौन।।
तुम करो या हम करें मिलके इबादत ही करें
ईमान की ये गहराइयां स्वीकारता है कौन।।
दास दिल के आईने में आ गई कितनी दरार
रिश्ते संगदिल हो रहे पर पहचानता है कौन ।।