हर मोड़ पर ठहराव क्यों है,
हर बात में सवाल क्यों है?
कुछ कह कर मुकर जाते हैं लोग,
कुछ वादे हवा में घुल जाते हैं।
पर मैं जानती हूँ —
जो मेरा है,
वो लौटकर आएगा,
क्योंकि नियति भी
सच के आगे झुक जाती है।
न जाने कितनी रातें जाग कर
मैंने अपने लिए
एक छोटा-सा सपना बुना था –
जिसमें दीवारें नहीं,
संवेदनाएँ थीं,
जिसमें छत नहीं,
ममता का आकाश था।
वो घर,
जहाँ एक दीया हर शाम जल सके,
जहाँ बच्चों की हँसी
दीवारों से टकरा कर
मुझे जीवन का संगीत दे सके,
जहाँ रसोई की गंध में
मेरी माँ की थाली की याद हो,
और मंदिर के कोने में
मेरे विश्वास की लौ कभी न बुझे।
मैंने हर संघर्ष को
ईंटों में बदला है,
हर आँसू को
सीमेंट बना लिया है,
और अपने शब्दों से
एक नींव रख दी है
जिस पर "घर" लिखा जा सके।
लोग कहते हैं —
“पैसे नहीं हैं, लोन कैसे होगा?”,
कोई कहता है —
“E खाता नहीं हुआ तो क्या होगा?”
लेकिन मैं कहती हूँ —
जब इच्छा सच्ची हो,
तो खाता भी खुलेगा,
और द्वार भी।
🌿 मैं बस चलती रही हूँ —
कभी टूटी चप्पलों में,
कभी नंगे पाँव,
कभी आँसुओं को पोंछती हुई
बच्चों की आँखों में
भविष्य की छत देखती हुई।
एक दिन वो भी आएगा —
जब मैं कहूँगी —
"ये घर मेरा है!"
न किसी कृपा से,
न किसी दया से —
बल्कि अपने हक़ और हुनर से।
उस दिन मेरी कलम चुप नहीं रहेगी,
मैं दीवारों पर कविता लिख दूँगी:
"यह सिर्फ चार दीवारें नहीं हैं,
यह मेरे संघर्ष की पहचान है।
यहाँ हर ईंट में एक कविता है,
और हर छत में छुपी हुई मेरी माँ की ममता।"
घर होगा… ज़रूर होगा
क्योंकि मैं स्मिता हूँ,
और मेरा नाम भी
संघर्ष से सृजन तक की यात्रा है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




