रात जल्दी-जल्दी गुज़र जा सखी.....
अब ये दर्द और सहा जाता नहीं,
अब और इंतज़ार भी होता नहीं।
रात जल्दी-जल्दी गुज़र जा सखी....
ख़्वाबों में अब और रहा जाता नहीं,
जुदाई में उनकी जीना आता नहीं।
रात जल्दी-जल्दी गुज़र जा सखी.....
उनसे दूर अकेली थकी जा रही,
मरज़ के दर्द से चूर-चूर हुई जा रही।
रात जल्दी-जल्दी गुज़र जा सखी.....
सुबह होते ही पहुॅंचना चाहूॅं वहीं,
है मेरे अपने जहाॅं जाऊॅं वहीं।
रात जल्दी-जल्दी गुज़र जा सखी....
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️