मुड़ कर देखा आईने में
बहुत दाग धब्बे थे।
कुछ छोटे
कुछ बड़े
कुछ ज्यादा गहरे थे।
तमाम कोशिशें की
पर पट पाना उनका
नामुमकिन था।
था वह आदमी
जिसका चेहरा सुरक्षित
रहना मुश्किल था ।
रिश्तों की तिजारत में
सबकुछ बिक गया।
कोई बच भी गया तो
उसका अंत और भी बुरा हुआ।
शहर दर शहर
हादसों का डगर था।
जिंदगी सरल थी पर
ढेरों अगर मगर मिला।
चलते रहें शामों शहर
नगर हर डगर .. की ..
मंजिल की चाह ने कभी
सोने ना दिया।
तमाम कोशिशें की
की तेरा हीं बन के रहूं
पर बेचैन मन ने तेरा भी
ना होने दिया।
सपनों की विरासत में दिल को
कुछ भी ना हासिल हुआ।
जिसे जितना करीब समझा
वो उतना क़ातिल हुआ।
बज़्म में मेरे आईने की लेकर
वही शामिल हुआ ।
बच बच के भी चला दोस्त
संभल संभल के भी
पर तोहमतो की लेप
चेहरे को हासिल हुआ।
देखा बड़े हीं गौर से चेहरे को
आईने में मुझे हर बार यही दिखा।
जुगतें तमाम हुईं पर सब
बेकार गया ।
मन का हर भाव
चेहरे पे चिपक गया।
जिसे छुपाकर नहीं रख सका।
वही बदरंग चेहरा हर बार
मुझे दिखा।
वही बदरंग चेहरा हर बार मुझे दिखा..