माँ भगवती शारदा कन्या देवी के पावन श्री चरणों को लक्ष्य कर लोकमंगल की धारणा से आचार्य श्री कृष्ण चैतन्य के मुखारविंद से कथा रश गंगा
मानव में धर्म के लक्षण को विकसित करती यह पावन कथा-
( धृतिः क्षमा दम अस्तेयं शौचं इन्द्रिय निग्रहः धीः विद्या सत्यं अक्रोधो दशकम् धर्म लक्षणम्)
डॉ राघवेंद्र पांडे समिति द्वारा ये अयोजन समिति सदस्य - शेषमन अग्निहोत्री, ऋषिराम शुक्ल , -अनूप पांडे , वेदप्रकाश पांडे , मृगेंद्र सिंह , रामसखा त्रिपाठी , सुखेन्द्र पांडे , शैलेश पांडे , श्रीकांत पांडे
मुख्य यजमान - रामभैया पयासी, सुनील पयासी ,
आखिर क्यों मिलना चाहिए कथा रस गंगा में? - श्री भगवान उवाच-नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च | मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ||” अर्थात् हे नारद ! मैं न तो बैकुंठ में ही रहता हूँ और न योगियों के हृदय में ही रहता हूँ। मैं तो वहीं रहता हूँ, जहाँ प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन किया करते हैं l
ऐसे में जब परमात्मा स्वयं मौजुद हो तो हमें परमात्मा की कृपा से वंचित क्यों होना चाहिए
आचार्य कृष्ण चैतन्य जी महाराज [श्रद्धालु मंडली]