कर्म पथ पर अब मेरा रुकना मना है!!
पंथ पंकिल,दुरूह,दुर्गम दिख रहा है,
प्रागल्भ्य नव प्रारब्ध जैसे लिख रहा है,
और निर्भीक बन उठते कदम
जब जब लगा कोहरा घना है!
कर्म पथ पर अब मेरा रुकना मना है!!
परिताप पारावार एक बार पार कर लिया,
उसके उभरते ज्वार को स्वीकार मैंने कर लिया,
क्यों डरूं अब उस पुलिन से
जो उथले उदक से सना है!
कर्म पथ पर अब मेरा रुकना मना है!!
कोई पंथी इस राह संग आये न आये,
यह गति यह चाल सबको भाये न भाये,
ईश्वर का चुना यह पथ
मेरे लिए ही बस बना है!
कर्म पथ पर अब मेरा रुकना मना है!!
श्री विवेक चंद्र जी